16 जनवरी 2022 को AIFAP द्वारा आयोजित अखिल भारतीय वेबिनार “23 और 24 फरवरी को सरकार की मजदूर विरोधी, जनविरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल और आगे का रास्ता” में कॉम. संतोष कुमार, प्रवक्ता, मजदूर एकता कमेटी के भाषण की मुख्य विशेषताएं

सर्व हिन्द निजीकरण विरोधी फोरम का बहुत-बहुत धन्यवाद, जो इस मंच पर मजदूर एकता कमेटी को अपने विचार देने के लिये मौका दिया गया।

ऑल इंडिया निजीकरण विरोधी फोरम (AIFAP) संगठित क्षेत्र के 71 यूनियनों को एक मंच पर लेकर आये हैं, इस पहल की जितनी भी तारिफ की जाये कम है। आपने “एक पर हमला, सब पर हमला!” के नारे को सार्थक करके दिखाया है। इसके लिये मैं मजदूर एकता कमेटी की ओर से आपको बधाई देता हूं।

23-24 फरवरी, 2022 को सरकार की मजदूर-विरोधी, जन-विरोधी, और राष्ट्र-विरोधी नीतियों के खिलाफ हम सब सर्व हिन्द हड़ताल करने जा रहे हैं, इसके लिये हम सब बधाई के पात्र हैं और हम सब मिलकर इस हड़ताल को कामयाब करेंगे।

हड़ताल मजदूर वर्ग का एक हथियार है; जब पूंजीवादी शोषण हद से ज्यादा बढ़ जाता है तब मजदूर वर्ग हड़ताल पर जाता है। जब मजदूरों के अधिकार छीने जाते हैं तब मजदूर हड़ताल करता है। इस हड़ताल के माध्यम से हम पूंजीपतियों को अपनी ताकत दिखाते हैं, कि अगर मजदूर वर्ग हड़ताल पर जायें तो पूंजीपतियों का उत्पादन, बैंक, ट्रांस्पोर्ट, पावर, बंदरगाह, रेल, हवाई जहाज, इत्यादी और पूरी अर्थव्यवस्था को ठप्प कर सकता है। मजदूर वर्ग ही वह ताकत है जो देश की दौलत को पैदा करती है। वह देश में सुई से लेकर हजाई जहाज बनाता है और पूरे देश चलाता है। यह पूरी ताकत हड़ताल के जरिये मजदूर वर्ग प्रदर्शित करता है।

पिछले साल हमने देखा कि मज़दूरों के बढ़ते जन-विरोध यह दिखाते हैं कि वे अपनी बदहाल हालतों से बहुत नाखुश और बहुत गुस्से में हैं। लॉकडाउन की वजह से बड़े पैमाने पर नौकरियां ख़त्म हो गई, वेतन में कटौती की गई है।

2020 में मज़दूर-विरोधी और पूंजीवादी-परस्त लेबर कोड बिल सरकार ने संसद में पास किया। लोगों के विरोध करने के बावजूद इसको पास किया गया। लेबर कोर्ड बिल का सबसे ज्यादा प्रभाव बड़े-बड़े उद्योगों के मजदूरों पर पड़ेगा। यह कानून मजदूरों को गुलाम बनाने का कानून है, मजदूरों को दासप्रथा में धकेलने का कानून है; वह इजारेदार पूंजीतियों को ज्यादा से ज्यादा मुनाफा बनाने के लिये लाया गया है और संसद में पास किया गया है।

केंद्र सरकार ने 2021 में निजीकरण की गति को और तेज़ कर दिया है। देश के पूंजीपति ऐसा कर सकते हैं क्योंकि वह इस पूंजीवादी व्यवस्था के हुक्मरान है। देश की व्यवस्था पर उनका पूरा कंट्रोल है। पूंजीपति लाखों-करोड़ो खर्च करके उस पार्टी को सत्ता में लाते हैं जो उनके अजेंडे को पूरा कर सकती है।

रेलवे, बैंक, रक्षा, पावर सेक्टर, बीमा क्षेत्र, रोडवेज, बंदरगाह, इन सब उद्योगों में सरकार निजीकरण करने में कामयाब नहीं हो पा रही है। लाखों-लाखों कर्मचारियों ने निजीकरण के अजेंडे को पीछे धकेल दिया है।

हम देख सकते हैं कि – रेलवे में 16 लाख कर्मचारी रेलवे के निजीकरण का विरोध कर रहे हैं। इस विरोध के चलते सरकार 100 दिन का प्रोग्राम लागू नहीं कर पा रही है। बिजली कर्मचारियों के संघर्ष के कारण सरकार इस बिजली विधेयक 2021 को संसद में पेश नहीं कर पायी।

रक्षा क्षेत्र के हजारों-हजारों मजदूर निजीकरण के खिलाफ़ जोर-शोर से संघर्ष चला रहे हैं। आवश्यक-रक्षा अध्यादेश 2021 के खिलाफ़ रक्षा क्षेत्र के मजदूरों ने राजस्थान, पंजाब, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु और कई राज्यों में हड़ताल किया। इसका कई यूनियनों ने समर्थन भी किया। उन्होंने दिखाया कि अगर वह हड़ताल पर जाये तो देश में हथियार, गोला, बारूद, रक्षा के सभी वस्तुओं का उत्पादन बंद हो जायेगा।
कोल इंडिया में 6 लाख से ज्यादा कर्मचारी भी कोयला खदानों के निजीकरण का विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

मजदूर बतौर मान्यता की मांग को लेकर, काम की हालतों में सुधार और वेतन की मांग को लेकर 1 करोड़ से ज्यादा आंगनवाड़ी और आशा कर्मियों ने विरोध प्रदर्शन किया है।

स्वास्थ्य कर्मचारी, डाक्टर, नर्सें अपनी बदहाल हालतों के खिलाफ़, वेतन न मिलने को लेकर और नयी भर्ति की मांग को लेकर दिल्ली, मध्यप्रदेश, और राजस्थान में संघर्ष कर रहे हैं।

स्कूल और विश्वविद्यालय के शिक्षक शिक्षा के निजीकरण के खिलाफ़ सड़कों पर हैं।
16-17 दिसंबर को बैंक कर्मियों ने दो दिवसीय हड़ताल किया। बैंक के 9 लाख मजदूरों ने हड़ताल किया। और सरकार को घुटनों पर लाकर खड़ा कर दिया। बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 को सरकार डर की वजह से संसद में पेश ही नहीं कर पायी है।

भारत प्रेट्रोलियम के 50 हजार से ज्यादा मजदूर तेल कंपनियों के निजीकरण का विरोध कर रहे हैं। फॉक्सकॉन के मज़दूरों ने चेन्नई बेंगलूरू महामार्ग को रोका; 15,000 मज़दूरों ने 17-18 दिसंबर को ज़ोरदार विरोध प्रदर्शन और हड़ताल की।
मजदूरों के यह सब संघर्ष एकता के उदाहरण हैं।

हम सब देख सकते हैं कि निजीकरण, उदारीकरण और भूमंडलीकरण की नीतियों के खिलाफ़ देश के मजदूर और किसान जुझारू संघर्ष कर रहे हैं।

हम देख रहे हैं कि झंडे, पार्टी, यूनियनों, से ऊपर उठकर मजदूरों की एकता बन रही है। मजदूरों की राजनीतिक चेतना बढ़ रही है। सभी मजदूर वर्ग बतौर एक मंच पर इकठ्ठे हो रहे हैं और वर्ग संघर्ष को अगुवाई देने की कोशिश कर रहे हैं।

हम मजदूरों को समझना होगा कि हमारे असली दुश्मन कौन हैं!

हमारे देश के असली दुश्मन हैं – टाटा, बिर्ला, अंबानी और अदानी; ऐसे 150 इजारेदार पूंजीवादी घराने हैं जिनकी हुकूमत देश में चलती है। इनके द्वारा न्यायपालिका, कार्यपालिका, संसद, विधानसभा चलायी जाती है। नीतियां और कानून बनाये जाते हैं।

हमारे देश में पार्टियों की भूमिका एक मैनेजर जैसी होती है। कंपनी में मैनेजर बदलते हैं लेकिन मालिक वही रहता है। इसी तरह से पार्टियां बदलती रहती है। पार्टी बदलने से पूंजीपतियों का अजेडा नहीं बदलता है। जैसे घोड़ागाड़ी में घोड़े समय-समय पर बदलते हैं लेकिन घोड़े की लगाम घुड़सवार के हाथों में ही होती है।

मजदूर एकता कमेटी का कहना है कि हम अपनी वर्गीय एकता को मजबूत बनायें और पूंजीवादी अजेंडो को – निजीकरण, उदारीकरण और भूमंडलीकरण को हराएं!
और एक ऐसे हिन्दोस्तान की संरचना करें – जहां पर – जल, जंगल, जमीन, हवा, पानी और खनिज पर मजदूरों-किसानों का अधिकार होगा।

जहां पर संसद, न्यायालय, विधान सभाएं, पर मजदूरों किसानों का अधिकार होगा!
देश की अर्थव्यवस्था को मजदूरों किसानों की खुशहाली के लिये चलायी जाये।
तब जाकर देश के पूंजीपतियों के लिये नहीं, मजदूरों, किसानों, महिलाओं और नौजवानों के लिये सूरज निकलेगा।

हम हैं इसके मालिक हम हैं हिन्दोस्तान, मजदूर किसान औरत और जवान!

23-34 फरवरी की हड़ताल को सफल बनायें!

इंकलाब जिन्दाबाद!

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