कामगार एकता कमिटी (KEC) संवाददाता की रिपोर्ट
केंद्र सरकार कोयला खदानों का ज्यादा ज्यादा निजीकरण कर रही है। दूसरी ओर, सार्वजनिक क्षेत्र की कोयला कंपनियों को अपनी उत्पादन क्षमता को आवश्यक दर पर बढ़ाने के लिए धन से वंचित किया जा रहा है। इसके कारण पिछले दो वर्षों के दौरान देश में बार-बार कोयले की कमी हुई है, जिससे देश को महंगा कोयला आयात करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। आयातित कोयले की कीमत का बोझ बिजली की ऊंची दरों के जरिए लोगों पर डाला गया है।
सरकार ने 03 नवंबर, 2022 से कोयला खदानों के एक और सेट की नीलामी शुरू कर दी है। इन कोयला खदानों में पूरी तरह से खोजी गई और आंशिक रूप से खोजी गई कोकिंग और गैर-कोकिंग कोयला और लिग्नाइट खदानें शामिल हैं।
कोयला मंत्रालय द्वारा 2016-17 से अब तक 32 कोयला खदानों की नीलामी की जा चुकी है। नीलाम की गई कोयला खदानों के विवरण के लिए बॉक्स देखें।
निजीकरण की दिशा में एक और कदम कथित तौर पर कैप्टिव कोयला खदानों को अपने उत्पादन का 50 प्रतिशत खुले बाजार में बेचने की अनुमति देकर विचाराधीन है। इस प्रकार, सभी कैप्टिव खदानें व्यावसायिक खदानें बन जाएंगी। खुले बाजार में अतिरिक्त उत्पादन बेचने से पहले उन्हें कंपनी की कैप्टिव आवश्यकता को पूरा करने की आवश्यकता नहीं होगी, जिसके लिए उन्हें आवंटित किया गया था। कैप्टिव कोयला खदान मालिक कंपनियां सार्वजनिक क्षेत्र की कोयला कंपनियों से सस्ता कोयला खरीदना पसंद करेंगी और अपने स्वयं के उत्पादन का एक हिस्सा खुले बाजार में बेचकर अधिक लाभ कमाएंगी जहां कोयले की कीमत बहुत अधिक है। 2021-22 में कैप्टिव कोयला खदानों द्वारा लगभग 90 मिलियन टन कोयले का उत्पादन किया गया और इसका उपयोग ज्यादातर बिजली उत्पादन के लिए किया गया।
वित्त वर्ष 2016-17 से कोयला मंत्रालय द्वारा नीलाम की गई कोयला खदानों का विवरण
उपरोक्त जानकारी केंद्रीय कोयला, खान और संसदीय कार्य मंत्री ने फरवरी 2022 में लोकसभा में एक लिखित उत्तर में दी थी।