AIPEF सम्मेलन बिजली क्षेत्र के निजीकरण की दिशा में किसी भी कदम के खिलाफ लड़ने के अपने संकल्प को दोहराता है

कामगार एकता कमिटी (KEC) संवाददाता की रिपोर्ट

ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (AIPEF) की फेडरल काउंसिल की बैठक 16 मार्च 2024 को चेन्नई में आयोजित की गई। इसमें पंजाब, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, असम, गुजरात और तमिलनाडु समेत देशभर से 23 राज्यों के घटक दलों ने भाग लिया। सम्मेलन ने बिजली क्षेत्र के निजीकरण की दिशा में केंद्र या राज्य सरकारों के किसी भी कदम के खिलाफ लड़ने का संकल्प दोहराया।

इंजीनियर शैलेन्द्र दुबे और इंजीनियर पी. रत्नाकर राव को क्रमशः अध्यक्ष और महासचिव के रूप में फिर से चुना गया। AIPEF ने फेडरल कौंसिल में महिला इंजीनियरों को शामिल करने के लिए अपने संविधान में संशोधन किया। पश्चिम बंगाल की इंजीनियर मौपाली मुखोपाध्याय को AIPEF का वरिष्ठ उपाध्यक्ष बनाया गया। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण निर्णय है, विशेष रूप से यह देखते हुए कि ट्रेड यूनियनों और संघों के नेतृत्व निकायों में बहुत कम महिलाएँ हैं।

अपने संबोधन में चेयरमैन ने जनवरी 1973 में उत्तर प्रदेश के बिजली इंजीनियरों की पहली सफल हड़ताल के बाद से देश भर में बिजली इंजीनियरों द्वारा किये गये कई ऐतिहासिक संघर्षों का जिक्र किया। नेशनल को-ऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी एम्प्लॉइज एंड इंजीनियर्स (NCCOEEE) के बैनर तले एकजुट हुए AIPEF के घटकों और बिजली क्षेत्र के अन्य कर्मचारियों की दृढ़ लड़ाई की वजह से केंद्र सरकार 2014 से अब तक बिजली संशोधन विधेयक पारित कर नहीं पायी है। बिजली (संशोधन) विधेयक 2022 भी समाप्त हो गया क्योंकि इसे संसद का कार्यकाल समाप्त होने से पहले पारित नहीं किया जा सका। हालाँकि, चेयरमैन ने बिजली क्षेत्र के कर्मचारियों को आगाह किया कि बिजली क्षेत्र के आगे निजीकरण का खतरा अभी खत्म नहीं हुआ है, और उन्हें इस राहत का उपयोग करना चाहिए और उपभोक्ताओं, विशेषकर किसानों और घरेलू उपभोक्ताओं, के साथ संयुक्त मोर्चा बनाकर आने वाले समय में एक निर्णायक संघर्ष छेड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए।

बैठक में AIPEF ने ट्रांसमिशन लाइन परियोजनाओं को निजी कंपनियों को सौंपकर बिजली ट्रांसमिशन के निजीकरण के नए प्रयासों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने बिजली क्षेत्र के निजीकरण की ओर एक और कदम के रूप में स्मार्ट मीटर लगाने का विरोध किया।

AIPEF टाइम्स के पहले संस्करण में AIPEF ने सभी राजनीतिक दलों को आह्वान दिया था कि वे हमारे देश के सभी लोगों के लिए बिजली को एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दे और घोषित करे। परिषद की बैठक के अवसर पर जारी AIPEF टाइम्स के छठे संस्करण में इस आह्वान का उद्धरण दिया गया है।

पहले संस्करण से
AIPEF दहाड़ता है

बिजली को मौलिक अधिकार घोषित करें

ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन राजनीतिक दलों के घोषणापत्र में विद्युत ऊर्जा उद्योग से संबंधित मुद्दों पर निम्नलिखित को शामिल करने की सिफारिश करता है:

“हम (राजनीतिक पार्टी का नाम) मानते हैं कि बिजली, आर्थिक विकास का प्राथमिक चालक होने के अलावा, जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए बुनियादी जरूरतों में से एक है। इसे मौलिक अधिकार घोषित करने की आवश्यकता है। खासकर आबादी के वंचित वर्गों और देश के दूरदराज के हिस्सों में स्थित लोगों के लिए किफायती मूल्य पर इसकी उपलब्धता को सार्वभौमिक बनाने की जरूरत है।”

 

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